मैं और मकान वाले | main aor makan vale


 

Main aor makan vale - kavita dekhe aor sune

मैं और मकान वाले 


वो मकान के मालिक है,

बुड़े बा कठोर से, और माँ विनम्र से है।

पाँच महिने हो गये आये यहाँ,

संकोच, शर्म, प्रेम और विश्वास से रहा यहाँ ।

बा जहाँ मेरे दादाजी के जैसे पैसो से और बातों से जुड़े है ।

वैसे ही माँ मेरी दादी सी देखभाल करने वाली और हिम्मत देने वाली है ।

कोई परेशानी आयी नहीं रहने में ।

कोई शिकायत आने दी नहीं मैंने ।।


इनके लङके बाहर ही रहते हैं, 

छोटा वाला मंगलूर कर्नाटक से कल ही आया है ।

पहली मुलाकात में कठोर फिर नम्रता दिखाता है,

छत का नल ठीक किया कुछ बातें की,

उनकी पत्नी सीधी, सादी, गाँव की ईमानदार, मिलनसार है ।

 सफाई की छत की साथ मिलकर एक दिन हमने ।।


अब परिवार के साथ यहीं रहने वो आ गये ।

उनकी पोती अच्छी सहयोगी रही मेरी,

धीरज वो साथ लाये, समझ उनमें खुब रही,

कभी - कभार स्कूल से आते जाते बच्चों से बातें होती,

इन भाइसाहब ने ऊपर रहने की अब आज्ञा दे दी ।

मकान बदलने की सोंच रहा था पर अभी यहीं रह रहा ।।


शुरू में संदेह लग रहा था, पर समझ मुझे यहीं रहने की कहा ।

कुछ दिन अकेले गुजरे थे यहाँ मेरे, अब मेरे नम्बर लिये इन्होने ।

डर मुझे था परदेश का, और विराने में भूत का ।

पर हिम्मत उन्होने दी और चाहा विश्वास मेरे साथ ।

मैं साथ रहा, काम से अपने मतलब रखते हुए बस ।

पूरा घर मेरे नाम था, बंगला था पूरा खाली ये ।।


रसोई, बाथरूम सारे अमीरों जैसे मेरे काम आये,

कोई रूकावट ना अब तक ना मेरे आई,

ना आयेगी दिक्कत आगे कोई ज्यादा सोंच ऐसी बन थी आई,

पर था किराये का घर ही तो ये भी,

समय हुआ परिवर्तन कुछ दिन बाद ही ।।


जब बड़ा बेटा आया और बहु भी साथ ले आया,

दोनो रूपवान और शहरी भाव के ये,

कुछ दिन बाद मिले आकर मुझे ये,

बात कही बा ने कि दो महीने बाद कमरा खाली करना होगा,

कुछ देर बात हुई उनके लङके से, तो मन की बात हुई, 

लड़के ने पिता को जिम्मेदार कहा - 

कहा की रहा इनकी वजह से अनपढ़ मैं,

थोड़ा अहम, थोड़ा जिम्मेदार और अधिक समझदार वो ।

घूमा फिरा कह रहा रहना आराम से पर जाना पङेगा मार्च को,

मैं निशंकोच मान रहा था बात को ।

समझा रहा वो लड़की की शादी होगी, और व्यवहार को,

15 मार्च आखिर निश्चित हुई और महीना 11 मार्च का होता है।

14 फरवरी गाँव गया शादी में, 

और आया बंद मिला बाथरूम जाने क्यों ।

अब निचे का हाॅल लग रहा था अनजान सा जाने क्यों ।


मकान मालकिन पोछा करती, सजावट करती लग रही मेजबान वो ।

पूछा दिक्कत हो तो चला जाऊगाँ बता देना,

 पर मना किया कोई दिक्कत नहीं आयी ।

पर तब से उनकी मालिकाना हरकते मुझे ना भाई वो ।

अब दोस्तों को पहचान वालों को कहा कमरा बताओ ।

अब नये किराया का घर देखना शुरू किया ।

स्टाफ ने भी बताया पर समझ असुविधाओं से ना भाया ।।


आखिर नये कस्बे में जाने का निर्णय हुआ पक्का मेरा ।

आज कहा मकान छोङने की तो, मकान वाले बा लगे उदास ।

माँ को बा ने बोला होगा तो वो और अधिक हुए भावुक आज ।

रोकने के शब्द उनके दिल पर लगे और मन भर आया मेरा भी आज ।  

विदाई का पल कल परसों और ये विकट मोड़ है आया ।

अपने बच्चों को वो बोलेगी कहा मां ने,

और मुझे लगा की कहीं मैं परेशानी ना बन जाऊँ ।

मन मैं अब नई चिंता कहीं मेें भावनाओं में,

और परिवार में ना पिस जाऊँ ।।


आखिरकार मकान किया खाली मैंने,

मां की आँखे थी नम बहुत। 

बा का चेहरा उदास, और भावुक वो क्षण।

क्या किया ऐसा जिससे मैंने मन में थी ऐसी जगह बनाई। 

विचारों में खोया रवि, कुछ कहता कम बस सामान उठाया।

चला नये मकान को, और नये मुकाम को अब।।


Kavitarani1 

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