संगीनी / sangini

है राह लंबी,
है वन के साये,
भय राह में आये;
कभी डराये,
कभी भटकाये।
मैं पकङ बांह आपकी;
साथ चलूँ आपके।
मेरे मन को सुकून आपसे;
हे तन को आहें,
मैं संगीनी आपकी,
चलूँ साथ आपके।
- कविता रानी।
कवितायें संवेदनाओं की अभिव्यक्ति होती है,अपनी भावनाओं को शब्दार्थ के साथ पिरोते हैं तो वह सुनकर पढ़कर महसूस करने वाले को प्राकृतिक स्वअनुभूति कराती है। मेरे शब्द भण्डार मेरे जीवन साथी Ravikantcheeta जी है वमेरे नवाचार के प्रेरक है। शिक्षा व B.Ed- Jaipur से करके कर्तव्यों के साथ लेखन कार्य व सामाजिक कार्य से जुड़ी हूँ। कविताओं में आपको राजस्थानी रंग, ग्रामीण परिवेश की छवि, एकांत भाव, प्रेम भाव, विरह, भक्ति, एकता, प्रेरणा आदि के भाव मिलेंगे। Please Like, share, comment, and follow. Thank you
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