दुर्लभ
दुर्लभ
वक्त-बेवक्त इत्तेफाक कई।
मतलब-बेमतलब बातें कई।
कई किस्से कहांनियाँ है बन रही।
मै चाहूँ या ना चाहूँ कहना,
मेरा आप ही कह रहा यही।।
कोई खास नहीं, कोई पास नहीं।
बंद ऑखो से कर सके विश्वास,
ऐसे इंसान कहीं मिलते नहीं।।
ना है खुद्दारी, ना ही ईमानदारी कहीं।
ना है सोंच, ना विचार कहीं।
पहन रखे अपनेपन के मुखोटे बस।
अपनेपन का कहीं अहसास नहीं।
बेवजह एकांत की वजह ढूँढता हूँ।
शांत जगह की है आस मेरी।
साफ मन के लोग कहीं मिले नहीं।
मैं ना न्याय चाहता, ना न्यायाधीश।
ना ईश्वर दूत चाहता, ना ईश।
मैं बस समय साध इंसान चाहता, और कुछ नहीं।
है दूर्लभ खोज मेरी,
रहनी है अधूरी खोज मेरी।
जैसे इंसान मै खोज रहा,
है वो यहाॅ दूर्लभ ही।।
- कविता रानी।
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