मैं और मेरा संसार।
मैं और मेरा संसार।
मुझसे मेरा संसार है और मेरे संसार से मैं।
दोनों में कोई अंतर नहीं।
क्योंकि जब तक मैं हूँ,
जैसा मैं हूँ,
वैसा ये।
पर दोनों विरोधी से लगतें हैं।
एक मैं अपनें मन की करना चाहता।
और मेरा संसार बस अपनी।
एक मैं हूँ जो सब कुछ पाना चाहता।
और ये मुझे पाने देता बस कुछ।
एक मेरे पास समय नहीं इंतजार का।
और इसका समय चलता अपने हिसाब से।
फिर मैं कैसे कहूँ कि मैं जी रहा हूँ अपने संसार को।
मुझे लगता है ये जी रहा मुझे।
मैं पंख उठाऊँ तो तेज हवायें आ जाती है।
और दौङना चाहूँ तो काली घटायें छा जाती है।
कुछ पल मेहनत करुं तो अंधेरा हो जाता है।
चाँदनी रात का आनंद लूँ तो सवेरा हो जाता है।
किसी से कहुँ तो वो सुनाता जाता है।
अपने लक्ष्य बताऊँ तो राहों में कांटे बिछा जाता है।
फिर कैसे मैं अपने संसार को अपना कहूँ।
कैसे कहूँ मेरा संसार ही मेरा जीवन है।
मैं और मेरा संसार दोनों अलग है।।
- कविता रानी।
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