हाँ भूल जाऊँगा मैं



हाँ भूल जाऊँगा मैं 


इस सुन्दर धरा के मनमोहक समा में। 

खुश होते मन के साथ,दुःख के सायों का मण्डराना।

स्वार्थी लोगों के पहरे को,

और जलन करके मरने वालों को,

हाँ भूल जाऊँगा मैं। 

याद रखुगाँ; लोगों की नियत का बदलना।

साथी कह कर मुझे गिराना।

खुद के काम को श्रेष्ट कहना

 मेरे श्रेष्टतर कार्य में ही कमियाँ दिखाना।।

पीठ पीछे चुगली करना,

सामने नकली मुस्कान दिखाना। 

हितेशी बने रहे मार्गदर्शन करना,

और काम पड़ने पर बहाने बनाना।

मेरी कही बात को झूठा बताकर,

कुछ ही देर बाद उसे अपनी बात कहना।

मूर्खता को भूल जाऊँगा मैं। 

और कैसे मेरे सपनों को रोंदा,

भूल जाऊँगा मैं ।

हाँ, यहाँ याद रखने जैसा कोई नहीं। 

आखिर इन लोगों को भूल जाऊँगा मैं।।


- कविता रानी। 


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