महक माटी की आये
महक माटी की आये
माटी की सुगंध, मनै मनकावली लागै।
ओ मन में उमंग, तरंग नई जागे।
पहली बरखा म खुशबु होली-होली जागे।
जगे सपने, सुहानी यादें जागे।
ले जाये बचपन की ओर, मन तरंग जागे।
जादु उड़-उड़ बन पतंगा पहली बारिस का।
मैं रह जाऊँ पल भर को, पल भर जी लूँ हाँ।
ओरे ! माई तु मई बुलाये लागै।
हल्की-हल्की महक से मन को लुभाये।
चल उठी पुरवइयाँ, मन सहज ना हो पाये।
गाये हल्की-हल्की बूंदे मन को मत समझाये।
टिस जगे, रिस फिर मजबुरी बन जाये।
उम्र की डोर और बदला छोर रोक जाये।
रूका हूँ मैं फिर से उड़ने को।
हल्की-हल्की हवा सगं मन उड़ना चाहे।
ओरे! माटी की सुगंध मनै भावे।
पहली बरखा जैसे हल्की-हल्की गीत गाये।
जैसे कोई गीत गाये।
मने महक माटी की आये।।
- Kavitarani1
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें