जिंदगी में
जिंदगी में
क्या कमाता? क्या खाता?
जिंदगी में दर -दर भटकता।
आज इस शहर।
कल उस शहर, गाँव-गाँव जाता।
काम का बोझ।
मन का ओज, लगे रहते रोज।
चलता रहता, रूके बिना।
मैं अपना दुःख सुनाता।।
क्या पाया क्या? खोया क्या ?
हुई शाम मन रोया।
एक-एक क्षण कर करके।
दिन बुने, मन चुने।
लोग मिले, अनजाने रहे।
रहे सब अनजाने।।
क्या कहता ? क्या सुनता ?
मैं अपनी राह खुद चुनता ।।
कई आये, मुझे झुकाये।
रोके मुझको सबने रखा।
उलझा कभी, कभी सुलझा।
आगे ऐसे बढ़ता।
आज इस शहर ।
कल उस शहर, मैं जाता गाँव-गाँव।
क्या कमाता? क्या खाता?
जिंदगी में दर-दर भटकता। ।
कवितारानी 1
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