फिर कैसे मंजिल पर ध्यान लगायें
फिर कैसे मंजिल पर ध्यान लगायें
जब सुबह उठने से जी घबराये।
अकेलापन सिर चढे और इतराये।
कोई सगा-साथी ना काम आये।
अपने मन को तरह से समझये।
कभी गानों को गुनगुनाये।
कभी मोबाइल में लगे रह दिन बिताये।
ऐसे में कैसे तो जीया जाये।
फिर कैसे मंजिल पर ध्यान लगाये।
सुबह छोड़ काम पर जाये।
उलझे रहे काम में और साथी आये चिढ़ाये।
बेवजह कुछ जले कुछ टांग अड़ाये ।
लगने ना दे अपने काम में।
ऐसे में कैसे मुल मंत्र पर कोई टिक पाये।
राह बनाते आये दिन और फिर बदलते जाये।
स्थिर ना चित्त रह पाये ना स्थिर जीवन पाये।
फिर कैसे मंजिल पर ध्यान लगायें। ।
Kavitarani1
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