ठगा सा मैं | main dhaga sa


 

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ठगा सा मैं 


ठगा सा महसूस करता हूँ ।

खुद ही अपने को हरता हूँ ।

कोई सगा ढूँढता फिरता हूँ ।

मैं दगा लेता फिरता हूँ ।। 


किसे कहूँ अपने मन की ।

कि है क्या मेरे मन की ।

मैं रोज फालतु मरता हूँ ।

मैं  सगा बनना चाहता हूँ ।

और ठगा सा रह जाता हूँ ।।


कोई ऐसा नहीं जो,

पास रहे, मेरे साथ रहे ।

कहे मेरी मुझसे और सुने मेरी मुझसे,

कि मैं क्या सोचता हूँ ।

क्यों ठगा सा महसूस करता हूँ ।

मैं सगा ढूँढता रहता हूँ ।।

मैं अपना सगा ढूँढता फिरता हूँ ।

और हर जगह ठगा सा मैं फिरता हूँ ।।


Kavitarani1 

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