मेरी खुशियाँ | meri khushiyan
मेरी खुशियाँ
कुछ पाकर भी खुश ना हो पाया ।
क्यों रहा खुशियों पर ये साया ।
जाना चाहा वो राह ना मिली ।
खुशियाँ मेरी अधुरी क्यों खिली ।
कहीं नजर से बचाने का उपाय तो ना किया ।
माँ तुने मुझे ज्यादा खुश होने क्यों ना दिया ।
कुछ सवाल अनायास ही आ रहे।
मन प्रफुल्लित और भय खा रहे ।।
सब आपकी कृपा, आशीर्वाद मानता हूँ।
इस धरती से ज्यादा मैं कहां जानता हूँ।
यही सोंच की आपकी मर्जी होगी ।
जैसी सोची बात कुछ वैसी होगी।
कुछ और पलों को यहाँ जीना है।
नई भावनाओं और उमंगो को सीना है।
आकर नई उम्मीद में मैं उठा हूँ।
पाकर राई नई मैं फिर झुका हूँ ।
आशीर्वाद आपका बनाये रखना ।
मेरे ईश्वर को मेरी किस्मत के साथ रखना ।
यूँ ही आपका प्यार रखना ।
Kavitarani1
21
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें