अपनी गाथा | Apni gatha
अपनी गाथा
धरती पर आये कई साल हो गये ।
किसी संघर्ष की अब बात नहीं ।
अपने काम के अलावा कोई बात नहीं ।
कई बरस बिताये थे दबिस में कहीं ।
नये चुनाव से फिर उड़ान भरी ।
परीक्षाऐं दे मास्टर बने ।
छोड़ मास्टरी फिर नयी राह चुनी ।
ताना था जमाने का की कृपा हुई ।
नई परीक्षा दी और पास भी हुई ।
पश्चिम से दौङ पूरब को आया ।
निचले पद पर जाकर अब ऊपर को आया ।
सफर जिंदगी का जोरदार रहा ।
पढाई के साथ काम भी किया ।
कोई कम नहीं कोई कोशिश बेहतरीन की की ।
जिसमें नहीं हुआ पास पर मेहनत ओर की ।
सुबह से शाम और अपनी धुन में जाते हैं ।
शादीशुदा जिंदगी में गर्म रोटी खाते है ।
मकान खुद का - कर्ज खुद का उठाते हैं ।
बचत खुद की चल रही है ।
साथ भागदौड़, समाज और मौज चल रही है ।
अब सपने शिखर के अब कभी-कभी आते है ।
सोच रहे मौका मिले तो लेखनी को आजमाते है ।
पर अभी अपनी गाथा बनाते है ।
अपनी गाथा सुनाते है ।
Kavitarani1
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