पथिक पुराना / pathik purana
पथिक पुराना
धुप बढ़ गयी, अब लू तेज चलती है,
आये दिन राह में साथ की कमी खलती है,
आते है मोड़ विकट राह खलती है,
बड़े - बङे गड्ढों संग चट्टानें भी मिलती है,
सुखी जमीन पर चलता है,
किचड़ में गिरता - फिसलता है,
घने जंगल से गुजरता है,
रेगिस्तान में गड़ता चलता है ।
कोहरे से लिपटता है,
ठण्ड में सिकुड़ता है,
भरी बारिश में गलता है,
भीषण गर्मी में चलता है ।
पथिक पुराना है,
अनुभव का खजाना है,
हिम्मत से चलता है ।
आगे ही बढ़ता है ।
रूका नहीं ना रूकता है,
थका नहीँ ना थकता है,
साथ नहीं साथ देता है,
हर मौसम में चलता है ।
सुबह का मजा लेता है,
शाम का सार सुनता है,
अकेले गुनगुनाता है,
आगे बढ़ता रहता है ।।
Kavitarani1
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