मैं पथिक / main pathik


 

Click here to see video

अपनी मंजिल को पाने को लालयित पथिक कैसा होता है और कैसे उसके यत्न, प्रयत्न होते है बताती एक सुन्दर कविता।

मैं पथिक


अशांत, एकांत, अधुरा,

निर्जन वन का बसेरा,

विचलित, भ्रमित, कसेरा,

विरान् मन पर ठहरा,

मैं पथिक पथ पर,

चलता, दौड़ता और ठहरा ।


पथ भ्रम, मति भ्रम,

भ्रमित जग का पहरा,

हठ धर्म, नित कर्म,

अथक मन का सहरा,

स्थिर प्रज्ञ, होकर अज्ञ,

चल रहा मैं पथिक सोंच गहरा ।


अंधकार, हाहाकार, प्रहार,

जीवन भर तन कहता रहा,

पीड़ा अपार, डोकर हार,

मन कई  बार सहता रहा,

जान सार, मान हार,

मैं पथिक डर चलता रहा ।


स्व साहस, स्व स्वांस, स्व अनुयायी,

बन खुद का अनुयायी,

कर संभाल, पग संभाल, पथ सवांर,

बस सहता, बढ़ता रहा,

मैं पथिक अपनी मंजिल को बढ़ता

और अपनी धुन में चलते रहा ।।


Kavitarani1 

253

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

फिर से | Fir se

सोनिया | Soniya

तुम मिली नहीं | Tum mili nhi