मैं गुल | Main Gul
मैं गुल
मैं गुल गुलिस्तां में अकेला हूँ ।
आशाओं की चाह में जी रहा हूँ ।
चाहूँ कोई आके रस ले मेरा ।
मैं अस्तांचल को देखता हूँ ।।
कोई उम्मीद करे मुझसे कि सँवर जाऊँ ।
कोई छुए मन से की महक जाऊँ ।
तोड़ ले अपनी टहनी से कहीं सज जाऊँ ।
तोड़ ले अपनी टहनी से कहीं सज जाऊँ ।
मैं जीते जी किसी के काम आऊँ ।।
कई भंवर से छिपा रहा हूँ मैं ।
बदलते वक्त में ताजा रहा हूँ मैं ।
मेरे साथ के अब मुर्झायें हैं ।
मैं इंतजार में हूँ कि काम आऊँ ।।
किसी प्रेम कहानी का इजहार बनना है ।
मुझे किसी की पौशाक पर सजना है ।
किसी कोमल हाथ पर आशीष पाऊँ ।
मैं इस जीवन गुलजार बन जाऊँ ।।
कोई फरेबी मेरे पास ना आये ।
दुष्ट, आततायी मुझे ना पाये ।
कड़ी धुप में भले सुख जाऊँ ।
मैं फुल नर्क को ना सजाऊँ ।।
कोई बस नहीं मेरा जग पर ।
ना मिट सकता हूँ खुद ही मैं ।
पर पाकर गुल बदन मैंने ।
कुछ सुख नयनों को दिया है ।।
सोंच जग की मुस्कुराऊँ ।
अपनी काया को आजमाऊँ ।
मैं अकेला रहा गुलिस्तां मैं ।
सोंचता हूँ कहीं तो काम आऊँ ।।
Kavitarani1
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