मन मेरा | man mera




मन मेरा 


कहने को जग है साथ में, 

पर मन को कहाँ कोई भाता ।

सुनने को सब है पास में, 

पर मन को कहाँ समझ आता ।

कुछ ही लोग मिलते है जीवन में ।

जिन पर मन आता ।।


बोल मेरे बड़े बेमैल होते,

हर कोई इन्हें कहाँ समझ पाता ।

शब्दों का झोल भरा होता इनमें, 

हर कोई कहाँ इन्हें तोल पाता ।

कुछ ही संयोग आ टकराते हैं,

जिन्हें मन आसानी से समझ जाता ।।


मन मोहक छवि लेकर रस भरी बोली जाते,

आँखो में चमक भर प्यारी सुरत दिखाते ।

हर मोड़ पर मिल जाते है लोग प्यारे से,

अपनी अदाओं का जाल बिझाते दिखते ।

हर को हर मासुम चेहरा कहाँ भाता ।।


बड़े अनमोल है ये चुनिंदा कुछ लोग मेरे,

जिन्हें समय साथ मैं खोता जाता ।

कुछ अड़े रहते जिद पर अपनी,

कुछ को मैं नहीं समझ पाता ।

कहता रहता लड़ते झगड़ते ही,

न माने ये तो खुद मान जाता ।।


आखिर एकान्त वासी बना बैठा हूँ, 

और मन को कहाँ समझ पाता ।।


Kavitarani1 

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