कैसे | Kaise

 


कैसे 


मैं खुद मैं सिमटा औरों की परवाह करूँ कैसे ।

रहता हूँ बैसुध, सुझ की बात करूँ कैसे ।

जाने कैसे कट रही जिन्दगी पता नहीं ।

मैं जिन्दगी जीने की बात करूँ कैसे ।।


एक भौर का तारा देखता हूँ, साँझ को निहारता हूँ ।

मोर का नाच देखता हूँ, पपीहे को सुनता हूँ ।

मैं अपने दुख का मारा, और का दुख दूर करूँ कैसे ।

मैं अन्त दुखी के दुख से, रूकूँ कैसे ।।


फिर तलाश नये आशियानें की, मैं खण्डहर में रहूँ कैसे ।

बना रहा अपना घोंसला, होंसले से दूर रहूँ कैसे ।

सिखा पाठ हिम्मत का, किमत अपनी कहूँ कैसे ।

मैं खुद ही टुटा हुआ, रूठा जग से रहूँ कैसे ।।


एक नीम का पेड़ छाँया देता कड़वा रहूँ जैसे ।

दुसरे को छाँव देता अंदर से खोखला रहूँ जैसे ।

आते बैठते लोग गुणगान करते दुख उन्हें सुनाऊँ कैसे ।

मैं अकेला शांत रहता अन्दर की अशांति कहूँ कैसे ।।


Kavitarani1 

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