Main pareshan | मैं परेशान
मैं परेशान
होङ नहीं किसी से, ना किसी से बैर मेरी ।
अपनी उलझनों में उलझा, जग में होते बैर कई ।
मैं जब अपनी धुन का राही रहता, कम ही किसी से हूँ कहता ।
फिर क्यों लोग आते हैं और परेशान मुझे कर जाते हैं ।।
मैं अपने पंखो से उङान भरता, खुद के दम पर ही मान करता ।
मैं अपनी मंजिल का पारखी हूँ, मैं खुद की धून का धूनी हूँ ।
किसी से कुछ लेना- देना ना, फिर क्यों जग मुझसे ऐंठे ।
सोंच अकेले में करता रहता, मैं परेशान उलझा रहता ।।
कुछ मतलबी आजकल मिलते हैं, कुछ स्वार्थ लेकर साथ चलते हैं ।
कुछ ईर्ष्या से नजर चुराते हैं, कुछ शब्दों के तीर चलाते हैं ।
कुछ बेवजह ही दुश्मन बन जाते हैं, कुछ मेरे खिलाफ लोगों को भङकाते हैं ।
कुछ कमी मैं अपनी ढूँढता हूँ, मैं परेशान अपने ढूँढता हूँ ।।
मेरी मंजिल कहीं रूठी है, मेरे सपने कहीं खोये हैं ।
मेरी आजादी पर बंदीशें लग रही, मेरी आवाज कहीं दबी है ।
मेरी राह कहीं गुम है, लगता है जैसे जीवन में बस गम है ।
मैं परेशान होकर बैठा हूँ, मैं राह फिर तलाश रहा हूँ ।।
दौर पुराने देखे सारे मैने, अपने और पराये देखे सारे मैने ।
बुरे से बुरा होता आया है, मन मेरा दुख मेथ भी मुस्कुराया है ।
मैं मुस्कुराता हूँ और नजर जैसे लग जाती है, खुशी मेरी खो जाती है ।
और मैं परेशान होता हूँ, मन ही मन रोता हूँ ।।
मैं अपने आप में रहने वाला, खुद को लक्ष्य पर लगाने वाला ।
मुझे गलत ही समझ लिया जाता है, मुझे अकेले नहीं रहने दिया जाता है ।
मुझे मेरी खुशी पर रोका जाता है, मुझे दुख में बेचारा कहा जाता है ।
मैं परेशान आप में होता हूँ, इसीलिए मैं अपने ताप में होता हूँ ।।
-कवितारानी।
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