मुझे अपनी राह चलना है | Mujhe apni raah chalna hai
मुझे अपनी राह चलना है
बहते दरिया को अपनी राह चुननी है ।
हो पत्थर, पर्वत, उसे अपने हिसाब से चलना है ।
मदमस्त मगन राही को अपने लक्ष्य चुनने हैं ।
मैं राही मतवाला, मुझे अपनी राह पर चलना है ।।
कोई सुने मधुर कोयल को या करे अनदेखा इसे ।
गाना है पपीहे को, कोयल को क्या लेना दुनिया से ।
हो अपनी दुनिया अपने हिसाब की, अपना ही कर्म रहे ।
होता है जो हो जाये जग में मुझे अपनी राह पर चलना है ।।
मधुर बोल मन भरे, या कङवे बोल चुभे मन में ।
मन का मजबूत राही, बिना रूके चले अपनी धुन में ।
सागर से भरे जग में अपना वजूद जो रखना है ।
अपने मन से बने राही को, अपनी राह चलना है ।।
उङते बादल को अपनी जगह जाकर बरसना है ।
हो बाधाएं हजार जिसे बढ़ना है उसे बढ़ना है ।
अपनी मंजिल के मतवाले राही को भी यूँ बढ़ना है ।
मैं भी राही मतवाला, मुझे अपनी राह चलना है ।।
- कवितारानी।

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