नयना | Nayana


नैना 


शब्द सहेज सांझ गाता, मैं भंवरा फुल पर मंडराता ।

सहज सरल मधुर दिखते, नयना कुसुम से दिखते ।।


नयना वो मद के प्याले हैं, मधुशाला से अधिक रस वाले हैं ।

भृकुटि पर और जमते हैं, तिरझे होकर देखते घाव करते हैं ।।


अधरों पर ध्यान जाता, मैं चकोर चाँद पर गाता ।

सुन्दरता फिर आकर्षण में होती, मधुर मुस्कान मन से होती ।।


नयना क्षीर सागर से गहरे हैं, अमृतपान से ये लगते हैं ।

पीर पंछी बन है रमती, आनंद की छवि तन पर जमती ।।


दर्द पुरानी फिर औझल है, नयनों में ये कैसा जादू है ।

एक टक जो मिल जाये ये, हृदय स्पन्दन बढ़ा जाये ये ।।


नयना प्रेम मार्ग होते हैं, इनसे ही जीवन प्रेम मय होते हैं ।

बङा आनंद की अनुभूति देते हैं, जो रस नयनों से पिये होते हैं ।।


-कवितारानी।

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