अरदास मन की | Ardas man ki



अरदास


ऐ सुनी वादियों सुन लो मेरी जरा, ऐ सुने लम्हों देख लो ज़रा। 

मैं बंजारा, मैं मतवाला ढूँढ रहा जीने को कुछ धरा।

ऐ रूठे लम्हों मान लो मेरी ज़रा,ऐ मस्ताने पल आ भी जाओ जरा।

उम्मीदें लाख दुआऐं हजार साथ है, एक बार सुनों कहता मन मेरा क्या?


ऐ बुझी हुई दीपक की लो; दे दो उजाला जरा।

पथ पर हुआ अंधेरा है मिल जाये थोङी राह।

ऐ सुनी वादियों दे दो बसंत यहाँ जरा।

कब से पतझङ झेल रहे अब तो मिल जाये उल्लास यहाँ।।


ऐ जाते हुए लम्हों यहाँ ठहरो तुम जरा।

थक गया हूँ मैं, मुझको दे दो पल भर की साँस जरा।

ऐ मासूम वादियों दे दो प्यार की बरसात यहाँ। 

सुखा झेल रही जिन्दगी को मिल जाए फिर राह।।


ऐ रुठी हुई चाहत मिल जाओ मुझसे जरा।

हुस्न और चाहत की मिल सके कुछ धरा।

ऐ मजबूर मेरी हालत, दे दो कुछ ताकत जरा।

जी सकूँ दम से नहीं तो, मर जाऊँ फिर यहाँ। ।


-कवितारानी। 

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