अश्रु धार बह आती है | Ashru dhar bah aati hai
अश्रु धार बह आती है।
उमङ आती गहरे सागर से,
नैनों के बांध ठहर जाती है।
झलक उठती पैमाने से,
नम धरा कर जाती है।
बहती कभी लकीर सी,
कभी गंगाजल सी लहराती है।
मेरे मन के कोनो से,
अश्रु धार बह आती है।।
लगती है पीङा भरी,
अपार दर्द की निशानी है।
रुखे पङे कपोल लकीर को,
पल भर में तर कर जाती है।
चलती सीधी सपाट सी,
नदिया ये बहुत खारी है।
एक ठोर लबो को छुकर,
अश्रु धार बह आती है।।
रंग नहीं बताने को,
खुद ही एक कहानी है।
आती अंधेरे कोनो से,
ऊँजाले में सब बताती है।
आलिशान सी काया पर ये,
खंडहर की निशानी है।
विशाल हृदय से सागर से,
अश्रुधार बह आती है।।
बेजुबान बेहया होकर आती,
सबको भाव विभोर करती है।
अपनो को पास लाती,
गैरों की पहचान कराती है।
कौन साथ पावन धरा में,
हकीकत से रुबरु कराती है।
बेसमय मन भर आकर,
अश्रु धार बह जाती है।।
भार बहुत लगता है,
तभी मन हल्का लगता है।
निकल जाने पर नैन झील से,
ये पानी कहाँ रुकता है।
खाली होते दर्द के प्याले,
हिम्मत बङती तब रुकते हैं।
बखान होता फिर होंसला था टूटा, तभी
अश्रु धार बह आती है।।
पावन, शीतल, शांत जल सी,
भरी हथेली अश्रु जल की।
एक-एक बूँद कर तौला जब,
कितना था दर्द बोला अब।
साहस पलकों में संभाला था,
हर समय सुनामी का झोला था।
करवटें हर समय मन भारी थी,
अपार दर्द में कपोल सवारी थी।
खुब गर्जन होती फिर रह रह-रहकर,
अश्रु धार बह आती नैनों से होकर।
कहती कहानी,थी जओ सीने के अंदर,
यही सब दासतां बन जानी है, जब
अश्रु धार बह आती है।।
-कवितारानी।

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