जीना ही तो है / jeena hi to hai



जीना ही तो है


सुबह हुई दिन, बढ़ेगा फिर, शाम होगी, फिर रात,

चलता रहता है बस यही जीवन के साथ।

ढुँढते लक्ष्य को पर कहीं छिपा हो ये,

पाने को इसे खाते ठोकरे दर दर की,

फिर कहीं मन से आवाज उठती,

जीना ही तो है।


क्या फर्क पङता है की कौन-कब-कैसे-क्या कहे,

कैसे इस जहाँ में हम जीये,

कौन साथ देगा किस पल को और,

कौन किस पल को छोङ देगा,

कहना तो बस इतना है,

जीना ही तो है।


जी लेंगे बिन साथ तुम्हारे,

अकेले या साथ इस अँधेरे में,

कौन जाने क्या मुक्कमल जहाँ होगा,

कहाँ कैसे ये याराना होगा,

कौन सी मंजिल जाके सर टकरायेगा,

और जीवन के अंतिम कष्टों तक कौन अपने बाजु होगा,

पर अभी तो बस इतना ही कहना है,

जीना ही तो है।


फिर चाहे सुखी रोटी मिले,

या खड्डों वाला संसार, 

दुख की वर्षा हर दम हो या,

मिले अपनों का बिछङा प्यार,

जीना ही तो है जी लेंगे जैसे तैसे,

जीना केवल सुख वैभव सा ही हो,

ऐसा भी कुछ सोंच कर नहीं आये।

जन्म से भी हमनें ये सब थे कहाँ पाये,

कौन जाने किस पल करवट लेगा संसार,

साथ हो जहाँ जो बदल दे अपनी कमान,

आज बस इतना ही कहना है,

जीना ही तो है, जी लेंगे,

आओ जीले जरा,

एक पल खुशी का मौज का पीले यहाँ,

चलो उस ऊजाले की और चले,

रिश्ते नातों से दुर हम मानवता के संग चले,

कोई पुछेगा नहीं कि तुम कौन हो,

क्या रिश्ते है आपस में,

हम जायेगें आपने अनुसार,

चल उस जगह चलते हैं,

चल कुछ पल जी लेते हैं।।


- कवितारानी।


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