कोई रास ना आता | Koi raas na aata



कोई रास ना आता


मिलते है चेहरे कई, कुछ तुमसे ज्यादा, कुछ तुमसे कम से।

आस लगती भी है उनसे कुछ, पर कोई असर खास नजर ना आता।

भाता है जिस तरह तेरा चेहरा वैसे कोई चेहरा और ना भाता।

एक तेरे सिवा दिल को मेरे कोई रास ना आता।।


लुभाती है बातें कई, कई सुर समझ भी आ जाते हैं।

दिल तक जाये ऐसे कई नगमें भी बन ही जाते हैं।

पर जाता नहीं कोई वैसे जैसे भाये रहे थे तुम कभी।

कहना बस इतना है कोई अब तुमसा रास नहीं आता।।


कहते हैं लोग कई बातें कई बनती रहती है।

मेरे जीवन की बेला में कहानियाँ नई जुङती है।

पर जैसे बने किस्स वैसे बने किस्सो में कोई ना समाता।

जैसे रास आई मन को तुम वैसे कोई रास ना आता।।


बनती है बंदगी लोगो से कुछ तुमसे कम कुछ ज्यादा।

खास लगती है यारी कुछ दिन, कुछ पल ही ज्यादा।

खत्म ना होती दिल्लगी और अनन्त समय सा मन ना लगता।

जैसा बिता समय साथ तुम्हारे वैसा कहीं ना कटता।

जैसे भाई थे तुम वैसे कोई रास ना आता।।


किस्से, कहानियाँ नगमे अब पुराने रह गये।

लगता है जिन्दगी के मायने ना रहे।

जैसे गये तुम आकर मेरी जिन्दगी में।

लगता है खण्डहर को विरान कर गये।।


अब कोई इस जीवन के लिए समझ ना आता।

आस लगी रहती कोई पसंद आयेगी।

पर इस मन को अब कोई रास ना आता।

अब तुमसा इस दिल के कोई पास ना आता ।।


-कवितारानी।


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