झुठी यारियाँ | Jhuthi yariyan



झुठी यारियाँ


 बङी बेखबर थी, वो मुझसे खबर कहती।

रात-दिन चलती दिल दारियाँ, दिल-दारियाँ।।


अपनी मन की कहती, मेरी मन की सुनती।

देती बातां पर म्हारी तालियाँ, बातां पर तालियाँ।।


चली ना लम्बी फिर, घुटने लगी।

बेवजह वजहें बनने लगी, वजहें बनने लगी।।


बहाने कर जाती दूर, दूर रहती करती मजबुर।

मजबुर कर दिया पुछने को उपाधियाँ, ये कैसी यारियाँ।।


पुछता खबर चिढ़ सी जाती फिर दारियाँ।

लग ही रहा फिर हुई मुझे झुठी यारियाँ।।


मैंने कह दिया पुछना हाल अब।

आते ना मैसेज ना जाते मैसेज अब।।


पुछन हाल कर दिया फिर।

बीजी आती रही कहना क्या रहा फिर।।


समझ आ गया मिल गया यार हाँ।

मुझसे हुई थी उससे झुठी यारियाँ, झुठी यारियाँ।।


छोङ जग जाना ना, हुआ दर्द गहरा  ना।

ना हुई कोई बैचेनी इस बार हाँ।।


सिख गया जीना मैं, दोखे खाके रहना मैं।

जान गया क्या होता मन लगाना, क्या होता प्यार हाँ।।


खुश हूँ मैं खुश वो रहे चाहे जैसे वो।

रहूँ चाहे जैसे मैं, रहे जग जैसे रे।।


चलती रही दुनियाँ, चलती रहे जिन्दगानियाँ।

सिखाती रहे जीना, मजबुत बनकर रहना, ये झुठी यारियाँ।।


-कवितारानी।


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