खुद से नाराज हो जाऊँ | Khud se naraz ho jau
खुद से नाराज हो जाऊँ मैं
सोंचता हूँ मैं आज खुद से नाराज हो जाऊँ।
कहूँ ना किसी से ना किसी को समझाऊँ।
एकान्त में बैठ रूठा सा हो जाऊँ।
मनाऊँ ना खूद को ना किसी को बताऊँ।
सोंचता हूँ आज नाराज ही रह जाऊँ।।
बहुत खूश हूँ बाहर के जग को बताऊँ।
कोई चाहे ना दिल से मैं सबको चाहूँ।
सुने ना कोई मेरी मैं सबकी सुनता जाऊँ।
अकेले में बैठ फिर से अपनी गाऊँ।
सोंचता हूँ ऐसे ना बदलूगाँ।
क्यों ना खुद से नाराज हो जाऊँ।।
जानता हूँ फिर कोई नहीं मनायेगा।
पता चले तो भी कोई पास ना आयेगा।
दुखी सा चेहरा लेकर जाऊँ तो भी कोई साथ ना आयेगा।
जानता हूँ यही सोंच थोङा घबराऊँ।
पर कुछ तो मन फिर सच्चे जग से लगाऊँ।
सोंचता हूँ क्यों ना आजमाऊँ।
मन करता है आज खुद से नाराज हो जाऊँ।।
कान्त हूँ एकान्त को फिर पाऊँ।
शांत था अशांत को दूर कर जाऊँ।
सह लूँ दर्द थोङा-थोङा खूद समझ जाऊँ।
कुछ अच्छा होगा सोंचकर आज ये आजमाऊँ।
सोंचता हूँ आज खुद से नाराज हो जाऊँ।।
-कवितारानी।

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