शीत वही / sheet vahi
शीत वही
लगता है हवा मैं नमी है।
एक शीत चुभन भरी कुछ गमी है।
लगता है शामें कुछ खफा है।
लगती ना मन पर, हवा रुसवा है।।
बढ़ भी रहा है अँधेरा देखो।
शीत की चुभन भी बढ़ रही है।
आराम की आस बस।
एक पल का सुकून नहीं।।
बढ़ रहा दुख का सागर।
तल कही दिखता नहीं।
छोर की तलाश जारी।
अँधेरे में हवा फिर डरा रही।।
सोच सकते हो कितना दुर्गम है।
मेरा पथ कितना पथरीला है।
आस का भी रहा दामन नहीं।
सांसे भी अब जमने लगी।।
लगता है दम निकलने को है।
जैसे साँसे थमने को है।
कुछ पल फिर याद में बीते।
समय निकल गया तब अहसास ही।।
लगता है कट कई राह भी।
रहा नहीं कुछ सहने को भी।
आगे बढ़ु कैसे शीत घनी अँधेरा वही।
लगता है थमी नहीं जीवन की विकट घङी।।
-कवितारानी।
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