मनमौजी बने

रुकसत ऐ उम्र, जहां ख्वाब देखता है। झोंपड़ी के सुख छोड़, महल देखता है। नादां नहीं परिंदा आशियाने देखता है। बंदिशे नहीं सोचनें पर, ख्यालों मेें रहता है। बस गुजरते वक्त की ना कदर करता है। रुकसते उम्र जहां ख्वाब देखता है। । -कवितारानी
कवितायें संवेदनाओं की अभिव्यक्ति होती है,अपनी भावनाओं को शब्दार्थ के साथ पिरोते हैं तो वह सुनकर पढ़कर महसूस करने वाले को प्राकृतिक स्वअनुभूति कराती है। मेरे शब्द भण्डार मेरे जीवन साथी Ravikantcheeta जी है वमेरे नवाचार के प्रेरक है। शिक्षा व B.Ed- Jaipur से करके कर्तव्यों के साथ लेखन कार्य व सामाजिक कार्य से जुड़ी हूँ। कविताओं में आपको राजस्थानी रंग, ग्रामीण परिवेश की छवि, एकांत भाव, प्रेम भाव, विरह, भक्ति, एकता, प्रेरणा आदि के भाव मिलेंगे। Please Like, share, comment, and follow. Thank you