मनमौजी बने | manmauji bane
Click here to see video Manmauji bane रुकसत ऐ उम्र, जहां ख्वाब देखता है। झोंपड़ी के सुख छोड़, महल देखता है। नादां नहीं परिंदा आशियाने देखता है। बंदिशे नहीं सोचनें पर, ख्यालों मेें रहता है। बस गुजरते वक्त की ना कदर करता है। रुकसते उम्र जहां ख्वाब देखता है। । -कवितारानी