मैं...कब / Main kab
मैं... कब
मैं भी बड़ा मुर्ख हूँ,
खुद को खो रहा हूँ-
खुद को पाने के लिये,
जी सकता हूँ आजाद और,
जी रहा हूँ जमाने की सोंच कर ।
बुरा लगता है खुद को कुछ,
पर जमाने को बुरा नहीं लगने देता हूँ,
बड़ा मुर्ख हूँ खुद की चिढ़ाई करता हूँ ।
कह अक्कल को काम लूँगा,
जमाने को छोड़ खुद का नाम लूँगा,
बढ़ाई सुन झुकना बंद कर,
सीना तान हक की माँग करूगाँ,
जाने कब अपने मन का ही करूगाँ ।
सोंचता हूँ दुर हूँ, खुश हूँ,
जाने किस बोझ में दबा रहता हूँ,
इस बोझ को कब आजाद करूगाँ,
मैं कब आजाद होऊगाँ ।
Kavitarani1
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