जैसे तुम वैसे मैं / Jaise tum vaise main

 


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जैसे तुम वैसे मैं 


सच्चा था मैं, सच कहता था ।

अपनी जुबान पर अड़ा रहता था ।

पर तुम थे समझदार, धार से करते रहते वार ।

कहते कुछ - कुछ थे करते ।

मेरी अच्छाई पर थे लड़ते ।

करता क्या ! क्या-क्या में सहता ।

ठोकर खाकर संभला अब - अब तरसा करता ।

रहता जैसे तुम - वैसे मैं ।

अड़ता मैं जैसे तुम वैसे मैं ।

मान जाता हूँ रूक जाता हूँ, सुनता हूँ ।

चालबाजियों से चाल बचाता हूँ ।

मन मारता और भाव खाता हूँ ।

अच्छा बना रहता हूँ पर अब अच्छाई नहीं ।

दिन आये खुद पर ऐसी कोई नहीं ।

बस अब ज्यादा ना सुनता ।

बात पसंद आये बस उतनी करता ।

हरता मन की पीड़ा - क्रीड़ा करता ।

अब जैसे मिलते तुम वैसे मैं  ।

अब जैसे, तुम वैसे मैं  ।


 Kavitarani1 

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