नारी / Nari / woman



नारी - कविता का विडिओ यहाँ देखें

 नारी।


निर्जन जीवन की संगीनी, 

शुष्क धरा की हरियाली, 

माता-पिता की लाडली, 

अपने ससुराल की मालिनी।


है प्यारी अपने ननिहाल की,

है मधुशाला अपने माधव की,

है मीरा अपने श्याम की,

है अर्द्धांगिनी अपने राम की।


है रोनक तुझसे घर की,

है शान-शोकत तुझसे कुल की,

है मर्यादा तुझमें अपनों की,

है श्रृंगार तुझसे जग की।


कोमलता भी तुझसे सिखती,

मानवता भी तुझसे खिलती,

धर्म ध्वजा तुझसे लहराती,

वीरों के वीर को तू सींचती। 


देव दानव सबसे भारी,

मानवता में पहले नारी, 

तुम्हीं अर्द्धांगिनी, तुम्हीं स्वामिनी,

तुझसे जग-जग से तुम्हीं; नारी।


-कविता रानी। 



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ऐ भारत के वीरो जागो / E Bharat ke veero jago

वो मेरी परवाह करती है | vo meri parvah karti hai

सोनिया | Soniya