मेरे गाँव की गलियाॅ | Mere ganv ki galiyan




 मेरे गाँव की गलियाॅ


दूर निकल गाँव से,
बङी-बङी सङकों पर चल।
भीड़ भरे बाज़ारों में, 
शहर में गाङियों के शौर में चल। 
मेरे गाँव के सुकून की याद आती है,
मुझे मेरे गाँव की गलियों की याद आती है। ।

खाने को, कुछ कमाने को,
जीवन बेहतर बनाने को।
मैं अपने खेत का सुकून छोङ आया,
मैं अपनी गाय, अपना गाँव छोड़ आया।
अब जब से कमाने लगा हूँ, 
पहले से अच्छा जीने लगा हूँ। 
तो गाँव की याद आती है, 
मुझे मेरी गाँव की गलियों की याद आती है। ।

मेरे गाँव की गलियाँ छोटी थी,
वो धूल सनी, सर्पीली थी।
वहाँ घर आपस में सटते थे,
वहाँ मन आपस में पटते थे।
शहर में सब अनजान है,
स्वार्थ तक सब साथ है।
बस यही बात सताती है,
मुझे मेंरे गाँव की याद आती है। ।

वहाँ बचपन गलियों में फिरता है, 
घर-ऑगन फलता फुलता है।
एक दूसरे का सब साथ देते हैं,
खेत खलिहानों में सब फिरते हैं। 
वहाँ की ताजा हवा मुझे बुलाती है, 
मुझे मेंरे गाँव की गलियों की याद आती है। ।


- कविता रानी। 




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