दूर से पहाड़ सुहाने | Dur se pahad suhane




अक्सर नजदीकियाँ व्यक्ति के महत्व को कम कर देती है, हम किसी भी तरह से जब किसी के पास होते हैं तो हम उसके गुणों के साथ उसके अवगुणों से भी परिचित हो जाते हैं। यह कविता इसी संदर्भ को बताती हुई।

दूर से पहाड़ सुहाने 
 
नजदीकियाँ क़ीमत घटा देती है।
कोई ख़ास हो कितना ही कमियाँ बता देती है। 
दूर जाने के फिर कई बहाने है।
समझदार को पता है;
दूर से पहाड़ सुहाने हैं। ।

वो कंकड़-पत्थर, रास्ते के फोङे,
कहीं ऊँची-निचि पगडंडीयाॅ, 
कहीं घने जंगल के साये,
पर दूर जाकर जब देखे;
तो लगते दूर से पहाड़ सुहाने। ।

वो जीवन भी ऐसा है,
जो सर्वश्रेष्ठ सा दिखता है।
दूर से बहुत अच्छा लगता है, 
पर अंदर है संघर्ष बहुत कहता है। 
हाँ; वो शिखर-सम्मान सुहाने है,
जैसे दूर से पहाड़ सुहाने हैं। ।

पर जो जहाँ रहता है,
उस माटी को अपना कहता है।
जिसे शीर्ष को पाना है,
फिर क्या संघर्ष, क्या बहाना है। 
फिर जीवन सफर में जो मिला सब अपने हैं। 
फिर हो कोई पहाड़, सब सुहाने हैं। ।
जैसे दूर से पहाड़ सुहाने हैं। ।


- कविता रानी। 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वो मेरी परवाह करती है | vo meri parvah karti hai

सोनिया | Soniya

फिर से | Fir se