अग्नि देव | Agni dev



अग्नि देव 

 देव लोक सब देव विराजे,
मृत्यु लोक पाप भारी।
कोई दाह कर पुण्य पाये,
कोई भस्म लगा भोला भारी।
सब मिटे राख होकर,
अंत समय सब खाक है।
मत कर अभिमान; मान कहना,
अग्नि देव महान है।

थे पूर्वज ज्ञानी, बङे विज्ञानी, 
हवन किये सुबह-शाम वे।
तन कि ज्वाला, मन की अग्नि,
करते स्वाहा सम्मान से।
है त्रिनेत्र में, है पृथ्वी के गर्भ में, 
है उदर की आग ये।
मत कर अभिमान;मान कहना,
अग्नि देव महान है।

है प्रलय के पहले वो,
है प्रलय के बाद, 
सृष्टि के निर्माण में वो,
है सबके निर्वाण के बाद।
मृत्युलोक के वियोग में साथी,
स्वर्गलोक के साथी वो।
मत कर अभिमान; मान कहना,
है अग्नि देव महान।

जग ने कब महिमा मानी,
अग्नि कुण्ड की परीक्षा जानी।
देव पाठ में अधूरी भक्ति, 
हवन कुण्ड से बङती शक्ति। 
पूजा में दीपक जलाते,
अग्नि देव संग ही आराधना करते है।
इसलिए हम कहते है,
अग्नि देव महान है ।।

-कविता रानी। 





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