Bechain mai (बेचैन मैं) hindi poetry
बेचैन मैं
सुबह का सुकून खोया है।
जैसे मेरा भाग्य सोया है। ।
कहीं गुम मेरा संतोष लगने लगा।
मैं जग में ठगा सा लगने लगा ।।
अकेले बैठे रहने का अब वक्त नहीं।
रात तक सोंचने तक का समय नहीं। ।
मेरी सांसे कहीं ,मेरी बातें कहीं।
लगे रहते काम में दिन भर, बैचेन मैं और मैं कहीं ।।
वक्त के साये में, मकान किराये में।
रोज की भाग दौङ में, जीवन अब छोटा लगने लगा ।।
सह रहा था अब तक जो,उसे अब जीने लगा।
जिन्दगी को पहले से अलग,मैं जीने लगा।।
अब फिर नये मोड़ पर, जिदंगी की होङ पर।
लग रहा हूँ जोड़ पर,और लग रहा है यहाँ कि,
बैचैन मैं, हाँ बेचैन मैैं।।
- कविता रानी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें