बुरा में नहीं।


 

बुरा मैं नहीं


बुरा मैं नहीं, बुरा वक्त बन आया है।

लगता है कहीं अंधेरे कोनो से निकल आया है।

जैसे दुख का साया मंडराया है।

मै खुशी की तलाश में था आगे बढ़ा।

ये मेरे सिर पर था जैसे खङा।

जब मै अपनी जिद् पर ही अङा।

वक्त ने बताया कि वो मुझसे है बङा।।


मैं हकलाया, भरमाया, शर्माया, लजाया।

फिर उस समय कुछ ना समझ पाया।

बचा फिरा फिर संभाल लाज।

निकाला वक्त फिर कुछ बङा आज।

आज फिर खुशी की तलाश में हूँ। 

पर जैसे मन में कहीं उदास मैं हूँ।

अब एक हिचक जैसे साथ है।

लगता है निराशा कुछ ज्यादा खास है।

मैं फिर सोंच विचार कर रहा।

देख रहा, जाॅच रहा कि कौन ज्यादा खराब है।

पता चला देख पिछे कि;

बुरा मै नहीं, बुरा वक्त बन आया है।।


- कविता रानी।



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