अक्सर | Aksar
अक्सर
हिमालय सा मन रखता हूँ।
कम ही राहगीर साथ चुनता हूँ।
ज्यादा समझता नहीं गहराई रीश्तों की।
पर अक्सर अच्छे लोग पास रखता हूँ।।
मन की बस मन ही जाने।
मन पहचान करता भाव से।
जग की बस जग ही जाने।
जग में मुखोटे बिकते चाव से।
मुझे अक्सर नजरों से लोग भाये हैं।
मुझे अक्सर अच्छे लोग भाये हैं।
चालाकी आजकल सर्वोपरी है।
मुख पर राम बगल में छुरी हैं।
मुझे तन से ज्यादा मन की बातें खाती है।
और मन का हारा मैं हार जाता हूँ।
ठोकर खाकर समझ आता कि;
मैं अक्सर इंसानो को समझ नहीं पाता हूँ।
- कविता रानी।
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