मन की डायरी (man ki dairy)
मन की डायरी।
क्या लिखा बता ना पांऊगा।
कोई पूछे अगर,क्या रूचि रखते हो!
मैं कहुँगा, "लिखता हूँ। "
कोई पूछे अगर, क्या लिखते हो !
मैं बता ना पाऊगाँ !
कोई कहे,बताओं क्या लिखा अब तक ?
मैं छुपा ना पाऊगाँ ।
पर वक़्त मिला मुझे कहने का,
तो भाव विभोर हो जाऊँगा।।
मैनें लिखा नहीं जमाने के लिये।
मैनें लिखा नहीं किसी को सुनाने के लिये।
ये शब्द है जो मन से निकले हैं।
ये अनकहे लब्ज़ है उकेरे हैं।
मैं चाहूँ भी की जग जानें मेरे मन को भी।
पर मैं चाहूँ छुपाना की, क्या दशा है मेरे मन की।
आसान नहीं बता पाना ये।
तभी तो मन मे आ जाता है आनायास ही।
कि 'क्या लिखा है बता ना पाऊगाँ।
क्यों लिखा है बता ना पाऊँगा।।
-कविता रानी।
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