रूक गया हूँ मैं / ruk gya hun main
जब हम अपने मंजिल के सफर में अथक प्रयास करते हुए चलते हैं तो कई बार ऐसे मोङ आते हैं जब हमें रुकना पङता है। यह कविता ऐसे ही मोङ की है जिसमें हमे बताया गया है कि ऐसे समय पथिक कैसा महसुस करता है।
रुक गया हूँ मैं
रुकने का कभी मन नहीं किया।
पर आज रुका हुआ हूँ मैं।
मेरी पसंद की राह पर,
एक जगह खङा हूँ मैं।
रुकना मेरी ख्वाहिश नहीं,
ना ये मेरी जिन्दगी का हिस्सा है।
बस चलने को रास्ते बंद दिख रहे।
यही अभी का किस्सा है।
एक ओर पायदान चढ़ गया हूँ।
पर लग रहा की कुछ ज्यादा रुक गया हूँ।
अपने जीवन के सफर में,
लग रहा की यहीं रुक गया हूँ मैं ।।
- कविता रानी।
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