तेरे लिए (tere liye)
तेरे लिये।
हाँ अकेला हूँ।
राहगीर हूँ अपनी धुन का,
जलता खुद ही,
धुआँ मैं खुद का।
आहुति देता अपने कल की ,
मैं सुनता नहीं किसी की।
मैं राह तेरी आया हूँ,
पास आकर तेरे मुस्कुराया हुँ,
रुका हुँ,
सोंचता हुँ,
कुछ करना चाहता हूँ,
जो किया नहीं किसी के लिये,
जैसा जिया नहीं किसी के लिये,
वैसा बनना चाहता हूँ,
तेरे लिए।
वैसा बना रहना चाहता हूँ,
और किसी के लिये नहीं,
बस तेरे लिये।।
-कविता रानी।
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