तुम रोक ना पाओगे / Tum rok na paoge
ये कविता एक प्रतिउत्तर वाली कविता है, इसमें कवयित्री उन सब लोगों को जवाब दे रही है और बोल रही है कि तुम कर लो कोशिश मुझे रोकने की पर मुझे रोक नहीं पाओगे। विरोधियों के लाख कोशिश करने पर भी मैं आगे बढ़ना जारी रखुंगी।
तुम रोक ना पाओगे।
तुम रोकना चाहते हो,
तुम निचा दिखाना चाहते हो।
तुम चाहते हो मैं गुलाम बनूँ।
तुम कहो जैसा, वैसा करुँ।
करुँ ना कुछ भी अलग मैं।
रहूँ बन दास मैं, चाहते तुम ये।
तो ये संभव ना हो पायेगा।
सफर मेरा अकेला ही देखा जायेगा।
जो मेरे लिखे बोल सुनेगा।
गाथा मेरे जीवन की समझ जायेगा।।
था जीवन आसान मेरा तुम बिन।
थी राहें सुगम तुम बिन।
थी मंजिलें सारी आसान तुम बिन।
बाधाओं से घेरे रखा, कैसे थे तुम।।
मेरी आज़ादी छिन ना पाओगे।
तुम चाहते हो स्वार्थ अपना।
तुम चाहते हो नाम अपना।
आलस, ईर्ष्या से क्या पाओगे।
जो मै चाहता हूँ बनना, रोक ना पाओगे।
तुम मुझे रोक ना पाओगे।।
- कविता रानी।
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