अब बेरंग सा मैं।(ab berang sa main)
अब बेरंग सा मैं।
शांत हूँ, नीरस हूँ, खोया हूँ मैं।
इस बेरंगी दुनिया में उलझा हूँ मैं।
रंग कई छाये दुनिया में।
रंगीन था जहाँ कभी।
अब बेरंग मैं।।
थी आवाजें कई बुलाने को,
मन में उमंगे थी जीने को,
सोंच कई, रंग कई, लिये था मैं।
खोया हुआ किसी कोने में।
अब बेरंग सा मैं।।
आशायें कईं थी कुछ करने की।
जीत की खुशी थी, हार की नमी थी।
कहीं आना जाना मन भाता था।
अब अकेले रह जीता मैैं।
अब बेरंग सा मैं।।
ना गम कोई खास है मेरे,
ना नम आँखें है मेरी,
सुर्ख सी जिंदगी, शुष्क सा मन रहता है,
कहानियाँ कई. रंग कई बताने को,
पर जीने को, बेरंग मैं।।
- कविता रानी।
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