कैसे इंसान हो / Kaise insan ho
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कैसे इसांन हो।
जब होते देख जुल्म तो,
मन कह उठा दर्द से।
कैसे इंसान हो!
दिल है की नहीं कुछ!
कुछ शर्म तो बची होगी।
या कुछ समझ बाकि रही होगी।
मेरा ना सोंच सके कोई बात नहीं।
पर अपनी ना सोंच सके ,
ये क्या बात हुई।
जो बोल बोले भूला नहीं।
कङवे घूट पीना आसान नहीं।
जो हुआ अतीत में कभी कहीं।
वो भूल जाना आसान नहीं।
पर भूल सब याद करता हूँ।
मै हूँ परिवार समाज में कहता हूँ।
जो है जीवन में सहता हूँ।
जो है नहीं तुम बिन कहता हूँ।
कि कहीं कोई दिल है कि नहीं।
अपनी समझ है कि नहीं।
कुछ शर्म बाकि है कि नहीं।।
कैसे एक सच्चे मन को ठुकराते हो।
कैसे एक बईमान बन जाते हो।
जो भला चाहे करना, बुरा करते हो।
क्यों इंसान सा बरताव नहीं करते हो।
कैसे इंसान हो।।
- कविता रानी। (KR)
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