क्या वो तुम हो | kya vo tum ho

 



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क्या वो तुम हो।


जिसे जीवन का भार सोंपना है।

मेरे दिल और दिमाग सोंपना है।

मेरी खुशियों का हिस्सा बनना है।

जिसे मेरे दुखों का भागी होना है।

क्या तुम हो।।


मेरे अधुरे लब्जों को पूरे करने वाली।

मेरे सुने जीवन को भरने वाली।

मेरी आशाओं के दीप जलाने वाली।

क्या वो तुम हो।।


क्या तुम ही मेरी सुबह की चाय हो।

क्या तुम ही मेरे शाम हो।

क्या तुम ही मेरी रात हो।

क्या तुम ही मेरी रानी हो।

क्या वो तुम हो।।


जिसे अक्सर सपनों में महसुस किया।

अक्सर जिसे पाने का ख्वाब देखा।

जिसे चाहा है खुद से ज्यादा।

जिसे मांगा है मंजिल से ज्यादा।

क्या वो तुम हो।।


मेरी ख्वाहिशों का शिखर।

मेरी चाहत की कदर।

मेरी उम्मीद और घर।

क्या वो तुम हो।।


-कविता रानी। ( KR)


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