और आगे बढ़ जाता हूँ मैं | Aor aage bad jata hun main

 


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और आगे बढ़ जाता हूँ मैं 


कुछ देर कल की सोंच रुक जाता हूँ मैं।

अपने जीवन के अंधेरे में उलझ जाता हूँ मैं।

अपने आज और कल से लङ जाता हूँ मैं।

रहूँ किस ओर सोंच में पढ़ जाता हूँ मैं।

कुछ ना हल मिलता मुझे आज कल का।

कुछ ना ज्यादा कर पाता हूँ मैं।

ठहरे रहने का आदी नहीं हूँ शुरू से।

आदत से मजबूर भूलते भूलाते जाता हूँ मैं।

अपनी फिक्र करता और आगे बढ़ जाता हूँ मैं।

जानता हूँ फिर कोई ना होगा।

पास मेरे कोई ना होगा।

यही याद कर सिहर जाता हूँ मैं।

यही सोंच आगे बढ़ जाता हूँ मैं।।


-कविता रानी।

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