स्काउट बनो
स्काउट बनो।
प्रकृति की गोद में अगर सिखना है।
जीवों के हित को अगर सोंचना है।
अपनें देश, धर्म से जूङे रहना है।
मानवता को अगर निखारना है।
तो स्काउट बनो। स्काउट बनो।।
यहाँ प्रशिक्षण नहीं, प्रकृति से जुङते हैं।
मोज और खोज में रमते हैं।
रोज नये खैल खेलते हैं।
व्यस्तता में मस्त रहना सिखते हैं।
यहाँ कुछ दिन में जीवन के स्काउट बनते हैं।।
देश की माटी का लगाव दिखता है।
यहाँ नई प्रतिभाओं का ज्ञान दिखता है।
नये जीवन उपदेश यहाँ मिलतें हैं।
हर जीवन के अनुभव सुनने को मिलतें हैं।
यहाँ कई स्काउट मिलतें हैं।।
विश्वसनीयता का भाव यहाँ जगाया जाता है।
वफादारी का पाठ पङाया जाता है।
भाईचारे की सिख दी जाती है।
यहाँ साहस, प्रेरणा की बात की जाती है।
स्काउट में गुणों को निखारा जाता है।।
बिन छत बिस्तर के रहते हैं।
हाथ से खुद बनाकर खाते हैं, पैदल चाल का आनन्द लेते हैं।
इशारों को सिखते हैं, नये-नये गठजोङ सिखते हैं।
स्काउट में नये-नये खैल, गीत, नीनाद सिखते हैं।
इसीलिए कहते हैं. जीवन को करना है आसान तो,
स्काउट बनो। स्काउट बनो।।
-कविता रानी।
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