ओ पंछी / o panchhi
कविताएं हमारा मार्गदर्शन करती है, चाहे फिर वो स्वाभाविक हो या अप्रत्यक्ष। इस कविता में हम बात कर रहें है पथिक की जो खुले आसमान में उङना चाहता है और अपने लक्ष्य को पाना चाहता है। पंछी रुपी इस पथिक के लिए कवि के विचार बताती एक सुन्दर कविता।
ओ पंछी
ओ पंछी बावरे।
उङ जा अकेले।
ओ पंछी बावरे।
दूर गगन साथी है, साथी पवन।
सुन साँवरें, उङ जा अकेले।।
वो भोर का सूरज आया अकेला।
जायेगा अकेला, धूल दुपहर करेगा।
डूबेगा अकेला, शाम, गोधूलिवेला लायेगा अकेला।
ओ पंछी बावरे।
सुन जा क्या कह रहा मनवा।
रहना है अकेला, जाना है अकेला।
उङ जा अकेला।।
वो धूल -दोपहर, रात, शाम।
उङती चलती है हर पहर।
रुकना ना आता इसे गवा संग।
जब संग है तेरे पवन, तो उङ जा संग।
उङ जा अकेला पवन के संग।
उङ जा अकेला।।
ओ पंछी बावरे।
उङ जा ्अकेले।
उङ जा अकेले।
दूर गगन में, उङ जा ्अकेले।।
-कविता रानी।
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