उलझता जा रहा।
उलझता जा रहा।
कोई आकर मिल रहा।
कोई मिलकर बिछुङ रहा।
याद है चेहरे कुछ।
कुछ पन्नों के जैसे भूल रहा।।
घुल गया हूँ जीवन में।
या जीवन मुझमें घुल गया।
था पाप किया कभी जो।
वो पाप-पुण्य बह गया।।
रह गया फिर मैं।
मुझमें में सिमट गया।
राह तलाश रहा बाहर बाहर की।
कि अन्दर और गहरा जा रहा।।
मैं उलझता ही जा रहा।
मैं उलझता ही जा रहा।।
- कविता रानी।
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