मनमानी



 

मनमानी

मैं सुनता हूँ, लोग सुनाये जाते हैं।

बिन पूछे बताये जाते हैं।

एक पल रोक अपनी जो कहूँ।

लोग मुहं फुला के चले जाते हैं।।


मैं कहूँ मदद करने की,

लोग लोग रुठे नजर आते है।

बिन मांगे कई बार काम में दखल दे जाते हैं।

काम बिगङे तो आरोपी बना देते हैं।

और काम सँवर जाते तो  वाह वाही लेते है।।


जब मैं अकेला रहना चाहूँ तो जीवन में घूसे चले आते हैं।

बिन कहे चिपके ही जाते है।

जब उदास बैठा मैं, कहूँ मेरे पास आने की।

तो लोग व्यस्त होते दूर नजर आते की।।


सलाह तो सारी जेब में लिए फिरते हैं।

बिन कहे सुनाते ही रहते हैं।

जब सही समय पर कहे बताने को।

तो मैं क्या जानूं , देख ले, कह भाग जाते हैं।।


ये कैसी मनमानी है।

ये क्या लोगों ने ठानी है।

मुझे नहीं लगता मेरी समझ की है।

ना मुझे किसी को समझानी है।

पर ये जबरदस्ती की कहानी है।

ये मनमानी है।।


- कविता रानी।

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