राम से दूर।
राम से दूर।
हो किस मत के मतवाले।
अंधे, अपाहिज या बेसहारे।
समझ से परे तुम्हारे तर्क सारे।
क्या कहती मति तुम्हारी, क्या तुम हारे।
जब हो जग से जुङे तुम।
फिर क्यों आसमान में पैर गाढ़े।।
कहता जग, सब राम का।
सुनता जग बस राम को।
तुम भी हो हनुमान जी के सहारे।
फिर क्यों ढुंढते अपने प्यारे।।
हो निर्बुद्धि, बोल बतलाते।
बहके, भटके, यही दिखलाते।
अपनी ही बस गाते रहते।
राजनीति की अपनी पकाते।
चाहे कोई हो अन्य मत का।
तुम मन दुखाते राम भक्त का।।
चाहिए क्या ना साफ बतलाते।
सनातन को निचा दिखाते।
महावीर का व्रत करते।
श्रीराम से भय करते।।
कैसे भक्ति और शक्ति पाओगे।
लहरों के विपरित और पथ से भटकते जाओगे।
जो राम से ना जुङ पाओगे।
तो कुछ काम ना आ पाओगे।।
- कविता रानी।
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