मैं बौझिल तन लिये
मैं बौझिल तन लिये
कहीं गुम खुद ही में।
मैं आसमान नापता फिरता हूँ।
बेसुद सा आजकल।
दुनिया भांपता फिरता हूँ।
मैं औझल अपने सपनों से।
मैं बौझिल तन लिये फिरता हूँ।
सबको अपना मानता।
मैं अकेला रहा करता हूँ।
मैं अन्दर ही अन्दर मरता हूँ।
मैं बौझिल तन लिये फिरता हूँ।।
- कविता रानी।
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